Wednesday, 20 September 2017

gel church history

गोस्सनर  कलीसिया  की स्तापना का श्रेय गोस्सनर मिशन के             फादर योहन्नेस         गोस्सनर को जाता है।
उन्होंने जर्मनी के बर्निल शहर  से 1844 ई. में चार मिशनरियों को भेजा। उनके नाम इमिल        ,फेड्रिक       ,        .                    फादर गोस्सनर से आदेश पाकर  मिशनरियों को बर्मा (   ) देश के मेरगुई शहर  में कारेन  जाती के लोगों  के बीच या हिमालय पर्वत के निकटवर्ती               में सुसमाचार प्रचार करना था।  परन्तु  परमेश्वर की अगुवाई  पाकर वे उपरोक्त स्थानों  पर न जाकर 2 नवम्बर 1845 ई. को रांची पहुँचे।  उन्होंने यहाँ आकर सुसमाचार प्रचार के साथ शिक्षा और          के माध्यम से लोगों के बीच सेवा और सहात्या का कार्यारम्भ  किया।           बेथेसदा  मिशन  -स्टेशन  (जिसका अर्थ -house of MERCY , अनुग्रह  का घर या क्षमा  का घर है )स्थापित  किया जहाँ  प्रथम उपासनालय भी है जो वर्तमान बेथेसदा बालिका उच्च विद्यालय परिसर में अवस्थित  है।  प्रथम चार मिशनरियों  की टीम में से ई. थेयादोर यानके की मृत्यु 02 अगस्त 1846 ई. को हुई और उनकी कब्र रांचु में है।  उनकी विधवा पत्नी श्रीमती हेनरिता  यानके  से बाद में मिशनरी औगुस्त  ब्रांत के विवाह  किया क्योंकि  वे तब तक अविवाहित थे।  मिशनरी औगुस्त  ब्रांत की परपोती श्रीमती sue sifa  वर्तमान  में ऑस्ट्रिलिया में रहती हैं  और गोस्सनर  कलीसिया से Facebook एवं E-mail के जरिये जुड़ी हुई है। 
           चार मिशनरियों की प्रथम टीम के एक मिशनी  की मृत्यु के कुछ महीने पहले 25 जून 1946  ई को एक बालिका का बपतिस्मा हुआ जिसका नाम मार्था  रखा गया।  उसके बाद 26 जून 1846 को 5 अन्य बच्चों  का बपतिस्मा हुआ तथा 9  जून 1850 को--------- समुदाय के चार व्यकितयो  के साथ 7 अन्य बच्चों सहित 11 लोगों  का पवित्र बपतिस्मा हुआ।  इन आदिवासी  पुरखों के वयस्क बपतिस्मा लेने के चार साल पहले  रांची के बपतिस्मारजिस्टर के अनुसार बच्चों  का बाल बपतिस्मा हुआ था -देखें www.kab.scopearchi.ch/Data/orGEL-oo3-0001on head quarter congregation, Ranchi) 9 जून 1850  ई. के व्यस्क बपतिस्मा के बाद  बपतिस्मा  लेने वालों का सिलसिला जारी रहा।  अगस्त वर्ष 26 अक्टूबर 1851  ई.को दो मुण्डा भाई 1 अक्टूबर 1885 ई. को नौ बंगाली ,22 जून, 1864 ई.को दो संथाल ,8 जून 1866 को दो खड़िया  बन्धु तथा 10 मई 1868 ई. को प्रथम 'हो ' परिवार के बपतिस्मा  से इस कलीसिया की जनसंख्या बढ़ने लगी।  राँची शहर  के ईद-गिर्द सेवा  कार्य -------का विस्तार  होता गया।  अन्य शहरो तथा गाँवो में भी मिशन -स्टेशन बनाये गए , जैसे डोम्बा (1847 ), लोहरदगा (1848 ),गोविंदपुर (1850 ),चाईबासा  (1864 )-------(1869 ),पुरुलिया (1863 ) सिंघानी (1853 ) और उन जगहों  पर मंडलियां  भी स्थापित की गई।  मिशन -स्टेशनों  में मंडलियां  के साथ विधालय भी खोले गए।  वर्तमान में झारखण्ड। बिहार,पश्चिम बंगाल,ओडिसा ,मध्य -प्रदेश ,छत्तीसगढ़।,महाराष्ट्र ,असम, अरुणाचल प्रदेश,अंडमान निकोबार,उत्तर -प्रदेश ,हरियाणा,अमृतसर,इलाहबाद ,दिल्ली,कोलकाता,चेन्नई,मुंबई,बेंगलरू,विशाखापत्तनम ,भुवनेश्वर ,आदि शहरो और राज्यों में मंडलिया स्थापित हैं। 
सन 1857 ई.. में सिपाही विद्रोह के आरम्भ हो जाने से गोस्सनर कलीसिया  में घोर विपत्तियाँ  आई  और छोटानागपुर के मसीहियों पर प्रथम सताहट शुरू हुई।  जुलाई का महीना था।  रांची -----------  -------  पर तोप के चार गोले दागे गये।  जिसका निशान आज भी राँची --------गिरजाघर के मुख्या पश्चिमी द्वार के ऊपरी भाग में मौजूद है। सताहट  से बचने के और अपने विश्वास की रक्षा के लिए विश्वासीगण  मिशन अहाते से भाग निकले।  सभी मिशनरी सुरक्षा  के लिए कलकत्ता चले गये।  इसी संकट के समय में कोलकाता में मिशनरी औगुस्त  ब्रांत के औगुस्त  ब्रांत के परिवार में पाँचवा पुत्र गोटफ्रिद ब्रांत का जन्म हुआ जिसने बाद में परिवार के वंश को आगे बढ़ाया। स्थानीय  ----------- जंगल,नदी  पार करते हुए भागते -भागते रांचीसे 38 कि.मी. दूर------ डुमरगाड़ी ,बिलसेरेंग  गाँव के जंगल में शरण ली।  वहीं पर उन्होंने ईश्वरीय -उपासना के निमित्त पथरो का ढेर -----------  क्रूस गाड़ दिया जो आज तक मौजूद है। उस स्थान को "------- डेरा "  के नाम से जाना जाता है। वहाँ प्रतिवर्ष उन आदि -विश्वासी -मिलन महोस्तव आयोजित किया जाता है। 

सन 1915 ई. में प्रथम विश्व युद्ध के समय जब जर्मन मिशनरियों  को स्वदेशन  लौटना पड़ा  तब  कलीसिया की देखभाल की जिम्मेवारी छोटानागपुर के बिशप डॉ. फोस्स। ....... (तत्कालीन  एंगलिकन  कलीसिया )को दिया गया। उसी दरमिया स्वदेशी कलीसिया अगुवों ने 10  जुलाई 1919 ई.में गोस्सनर कलीसिया को ऑटोनोमस (आत्मशासित , आत्मपलित एवं स्व -सुसमाचार प्रचार करने के लिए स्वतंत्र ),घोषित किया।  कलीसिया  में जो सभा बनी उसका नाम चर्च कौंसिल रखा गया. एडवाईजरी  बोर्ड इंडिया बनाई जो सेन 1928  ई. तक थी। इस ट्रस्ट ने सरकारी इकरारनामा के अनुसार नए बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज को जायदाद का जिम्मा 1939  ई. तक के लिए दिया जिसने 9  मई 1940 ई. को गोस्सनर कलीसिया को पूर्णरूपेण  जायदाद हस्तांतरित  क्र दिया और सम्पूर्ण चल-अचल सम्पत्ति का पूर्ण स्वामित्व गोस्सनर कलीसिया  का हो गया। 


आत्मशासित कलीसिया ने अपनी नियमावली बनाई और कलीसिया का पंजीकरण या रजिस्ट्रेशन गोस्सनर। ------------  चर्च इन छोटानागपुर एण्ड असम के नाम से 30 जुलाई 1921 ई.को सोसाइटीज एक्ट 1860  की धारा 21 के अनुसार हुआ इस नियमावली के अनुसार कलीसिया-प्रशासन  का भार  चर्च कौंसिल और महासभा के ऊपर रखा गया।  कलीसिया के प्रथम प्रेसीडेंट  मान्यवर पाद्री  हनुकदन्तो लड़का ,सेक्रेटरी  मान्यवर श्री पीटर हुरद  हुए और। ...... ... श्री निर्मल सोय  चुने गए। 

10फरवरी  1928 ई.को एडवाईजरी  बोर्ड का अन्त हुआ।  इसी वर्ष कई जर्मन मिशनरी भारत लौट  आए , जो 
 कलीसियाकी नियमावली के अधीन काम  लगे।  लेकिन  1939ई. में पुन: द्वितीय विश्व  महायुद्ध के छिड़  जाने से जर्मन मिशनरियों को स्वदेश लौट  जाना पड़ा।  
1928 ई. .में कलीसिया की नियमावली का संशोधन किया गया , जिसके अनुसार इसका सम्पूर्ण। ...... 15 सिनोड में बांटा  गया।  राँची की मंडली को हेडक्वार्टर्स या MOTHER -CONGREGATION (माता -मंडली) कहा गया। 1960 ई. में नियमावली  का फिर संशोधन किया गया  जिसके अनुसार कलीसिया को चार अंचलों में बांटा गया तथा अलग से।.                   सिनोड और हेडक्वार्टर्स  कंग्रिगरेशन  राँची को अस्तित्व दिया गया। 1970 ई.में।  ......... सिनोड को मध्य -अंचल के नाम से पाँचवा अंचल घोषित किया गया।  इसके अनुसार केन्द्रीय सलाहकारी सभा तथा अंचलो में अंचल सभाए बनीं।  केन्द्रीय सलाहकारी सभा (के.एस.एस.) की सहायता  के लिए अनेक बोर्ड बने। 

सन 1973  में कलीसियाई  संविधान के पुन :संशोधन की प्रक्रिया शुरू हुई जो कई कारणों  से पूरी नहीं हुई।  फिर भी बिशपीय  शासन पद्धति को अपनाने  एवं कलीसिया में एकता लाने के लिए सविधान  का फिर से संशोधन  किया जाने लगा।  इसी के मद्देनजर 2 नवंबर 1995  से बिशपीय  शासन पद्धति लागू  की गई।  इसके तहत कलीसिया पाँच डायसिसो और हेड क्वार्टर्स कंग्रिगरेशन ( माता -मंडली) राँची के रूप में संगठित  की गई ,जो इस प्रकार हैं :-

1 .नार्थ -ईस्ट डयासिस (हेड क्वार्टर तेजपुर ,असम )
2 .नार्थ-वेस्ट डयासिस (राँची  से उत्तर पश्चिम )
3. साउथ -ईस्ट डयासिस (राँची  से  दक्षिण कदमा , खूटी )
4 .साउथ-वेस्ट डयासिस (ओडिसा ,राजगांगपुर )
5 .  मध्य - डयासिस (........  सिमडेगा )
6 . हेडक्वार्टर्स  कंग्रिगरेशन,राँची। 
 डाय सिसो में डायसिसन  .........  और केन्द्र  में सेन्ट्रल  ......  ऑफिस का गठन किया गया।  इनके प्रधनों अर्थात  प्रधान पादरियों को बिशप कहा  जाता है। कुल छ: बिशप हैं  जिनमें से एक मोडरेटर चुने जाते हैं जो अपने डयासिस के बिशप होने के अतिरिक्त केन्द्रीय कार्यालय के प्रधान होते हैं। 
गोस्सनर कलीसिया अपने ऑटोनोमी को लेकर 98 वर्ष पूरी करने की ओर  बढ़ रही है। इस निमित्त सेन्ट्रल। ........ ने कलीसिया के आत्म -निरी  ...... ,मूल्यांकन और भविष्य के लिए एक दर्शन के निर्माण हेतु एक कमिटी बनाई है।  इसके द्वारा कलीसिया की मजबूती और दुर्बलता दोनों पक्षों  में शोध करने का अवसर मिलेगा। सविंधान  में वर्णित पाँच -सूत्री सेवकाई ,यथा-ईश्वररोपासन ,पास्तरीय  देख भाल ,सुसमाचार प्रचार,सामाजिक -आथिर्क विकास एवं चंगाई की सेवा के आलोक में मुल्यांकन  होगा। 

गोस्सनर कलीसिया के लिए गौरव  का विषय है की जर्मन मिशनरियों ने दुरदर्शिता का परिचय देते हुए कलीसिया की आत्मनिभर्रता या स्वपालन हेतु। ........ भू-सम्पत्ति की व्यवस्था की है।  इनकी सुरक्षा करते हुए उनका सदुपयोग कर कलीसिया की आर्थिक। ........ को मजबूत बनाया जा सकता है और यह जरुरी  भी है। स्कूल ,कॉलेज,शिक्षा -प्रशिक्षण संस्थाओं  को सुधार के साथ विकसित करने ,अस्पताल व  ......... के द्वारा रोगियों की सेवा करने की चुनौती दिनों -दिन बढ़  रही है। इसी प्रयास में राँची हेड -क्वार्टर के अंतगर्त 2  नवंबर 2011 ई. को। ....... चर्च बेथेसदा प्रेयर टावर एण्ड कौन्सेल्लिंग  सेंटर (.........  केन्द्र )का प्रारम्भ हुआ है।  इसके लिए सम्पर्क संख्या 9934111919 ,8809910783 ,923401325  है जिसके द्वारा प्रार्थना  अर्जी भेजी  सकती है। 













Saturday, 16 September 2017

प्यार क्या है?

प्यार ,हर किसी के जीवन में प्यार ने दश्तक  जरूर दिया होगा। हर कोई अपने जीवन में किसी न किसी  से प्यार ज़रूर किया होगा ?आपने भी किया होगा ?आज में आप को ऐसे ही प्यार के बारे में बताने वाली हु  जहाँ सैम ने   भी किसी  से बेहद प्यार किया था। यह कहानी है। सैम की जिसने युवा उम्र में प्यार किया , यह उम्र ही  ऐसी है जहां युवा अपने भविष्य को छोड़ अपने जीवन में एक ऐसे  मित्र को ढुढते  है। जो उन्हें  बेहद प्यार करे और यह कहानी भी ऐसे ही युवा की है  जिस ने अपने युवा उम्र में एक लड़की से प्यार किया। उसके प्यार का नाम था राजी। उनकी मित्रता कब प्यार में बदल गयी उन्हें भी नहीं पता थी। 


सैम और राजी एक दूसरे  से कब और कैसे प्यार करने लगे उन्हें  पता भी नहीं  चला । वे अक्सर एक दूसरे से मिलते और बाते करते उनकी बाते कभी ख़त्म होने का  नाम ही नहीं लेती, बिताए हुवा  हर पल ऐसा लगता  मनो एक छन हो। कैसे ५ साल बीत गया  उन्हें पता  भी नहीं  चला।  न जाने कैसे राजी के परिवार वालों  को उसके प्यार के बारे  में पता चला। राजी के परिवार वाले  उनके प्यार के खिलाफ थे। क्योंकि सैम एक इसाई  परिवार से आता है। राजी के परिवार वालो ने उसके प्यार को नहीं  स्वीकारा जिससे सैम और रागी एक दूसरे  से अलग होना पड़ा । राजी ने प्यार और परिवारवोलों  के बिच अपने परिवार को चुना जिससे सैम पूरी तरह  टूट चुका  था । शायद परमेश्वर ने सैम की जीवन के लिए  कुछ और ही सोचा था। जहाँ सैम और राजी का एक दूसरे  से मिलना बाते करना  बंद होया था।  सैम बहुत ही  उदाश रहने लगा वह परमेश्वर से प्रसन  करने लगा।  वह न तो किसी से बाते करता और न  किसी से  मिलता स्वयं में ही रहने लगा। इसी बिच एक दिन उसकी मित्रता सोशल मीडिया द्वारा  एक लड़की से हुई जिसका नाम था  देविका । देविका उसके जीवन में तब आयी जब सैम अपने जीवन से न खुश था देविका से बाते करने के बाद  सैम अपनी उदास जीवन के बारे  में भूलने लगा देविका से बाते कर उसे  काफी अच्छा लगता था।  जहाँ कोई उसके बारे में पूछता भी नहीं था। देविका के जीवन में आने से वह मुस्कराने लगा मनो उसे एक नई जीवन मिली। देविका में उसने  राजी को मह्सुश करने लगा।

सैम की रुची हमेशा से ही फोटोग्राफी में थी वह एक  फोटोग्राफर बनना चहता था। देविका  ने सैम  को अपने इस सपने को पूरा करने  के लिया  प्रेरित किया, सैम अपने सपने को साकार करने के लिए पूरी मेहनत  करने  लगा। देविका के जीवन में आने से सैम को एक नई जीवन मिली देविका के सात सैम ने एक नया जीवन शरु  किया।  देविका के आने से सैम को  ना केवल एक नई ज़िन्दगी मिली बल्कि उसने अपना सपना भी पूरा किया आज वह एक महसुर फोटोग्राफर है।  वह एक कुशल ज़िन्दगी जी रहा है। जिस परमेश्वर को वह कभी प्रशन करता था आज उन्हें धन्यावाद देता है ऐसे जीवन की जहा उसे एक नई जीवन साथी मिली। और उसने अपना सपना पूरा किया।

बाइबिल  जेरेमिया ३३:३ में लिखा है। तुम मुझे प्रशन  करोगे और मैं तुम्हें  तुह्मारे प्रश्नो का उत्तर दुगा। परेमश्वर ने भी उसके प्रशनो  का  उत्तर दिया। जहा उससे एक ऐसे जीवन साथी मिली जिसने उसे एक नया जीवन और प्यार दिया।सैम से मिलकर और उसके जीवन के बारे में जान कर मुझे  ज्ञात हुआ की अगर जीवन में कुछ होता है तो तुम्हरे बलाई के लिए है परमेश्वर ने हर किसी के लिए कुछ न कुछ सोचा है हमें उस परमेश्वर को प्रशन नहीं करना चाहिए।  बस परमेश्वर पर दिल से विश्वाश करो तुम्हे तुम्हरे क्रम का फल जरूर मिलेगा।