Sunday, 27 May 2018

मुण्डारी  भाषा भारत के आदि - निवासी जाति  की भाषा  है। इतिहास बताती है कि  यह जाति आर्य लोगों  के  भारत मे प्रवेश  करने करने के  कई युग  पूर्व  ही से यही बसी हुई थी तथा  इनकी संस्कृति और सभय्ता यहाँ फैली  हुई थी। कहा  जाता है की उस युग मे उनका राज्य सारे  उतर भारत मे  फैला  हुआ था और आर्यों  के यहाँ प्रवेश करने पर,पहली बार उन्ही  आदि - निवासियों  के साथ टकर  खाना पड़ा था। टकर  खाना पड़ा था। उत्तर  भारत में मुण्डा भाषा के अनेकों  गाँव , शहर  एवं स्थान पाये जाते है फ़ादर होफमैन (Ency.Mundarica,Vol.6:1819) लिखते हैं -The Rig Veda speaks of aboriginal leaders ruling over a hundred cities; of their firm forts and their castles;the composers of the 104th hymn of the first book seems to envy the wealth of the Dasa Kuyaya,in a passage thus interpreted by Ludwig:"While the poor Aryan Who can only wish for the wealth which he does not possess, has not even ordinary water to was"h himself in,the wives of the enemy in the insolent pride of their riches bathe in milk."

इस अभिलेख  से मालूम  होगा कि यहाँ  के आदि - निवासी उस युग में कितनी उन्नत दशा में थे :उनमें  राजनीतिज्ञ  एवं  पढ़े  लिखे विद्वान थे जिन्ह्नोनें कंथित  अनूठा ग्रन्थ को रचा था।  इससे अनुमान किया जा सकता है कि  वे साहित्यक  सभयता  में कितने धनी  थे।  यह भी अनुमान किया जा सकता है कि  जब उक्त ग्रन्थ था तो उनकी साहित्य थी और जब साहित्य थी तो निशचय  लिपि  भी थी जिसके विषय कितने दोषदर्शकों  का खाना है कि  मुण्डा  लोगों  कि  लिपि  नहीं थी।

सरनत चन्द्र  रोय।, The Historian of Ancient India in the Historians History of the world से उदाहरण देते है जो खता है, "It was from the natives that the Arans learnt the art of building in stone, they  themselves like other Indo-Europeans understanding how to build in wood and piles or dwelling in caves." {[Mundas&their country p-28].

The organisation of the villages under a headman was probably then already proper to one at least of the Santhali tribes. It so struck the Aryans that they were the first to call these headmen Mundas (itly, head ) and their people Mundas. The Mundas call themselves Horoko or Horo, men.

इस इतिहासिक  लेख  से ------- प्रमाण मिलता है कि आर्यों  ने उन आदि  निवासियों  से बहुत -सी विघा सीखी।  समभवतः उन्होंने उनके बहुमूल्य एवं चमत्कारपूर्ण लोगों से लेख ---- थता पढ़ने -लिखने की शैली  और व्याकरण  आदि  भी अपना ली होगी।  सम्भवतः इन्होंने  उनकी लिपि को भी आलिंगन कर लिया होगा जिसने बदलते -बदलते वर्तमान देवनागरी का रूप धारण किया है।

मुण्डारी भाषा को एक पिछड़ी एवं दलित जाति  की भाषा समझ कर इसका अध्ययन या इसके विषय अनुसंधान  का कार्य तनिक भी नहीं हुआ है।  अगर किया जाय तो बहुत सी पौराणिक  बातें  मालूम हो सकती हैं।  यह कहना  असत्य नहीं होगा कि यह भाषा  संस्कृत से भी पुरानी   भारत की जितनी भी भाषायों  हैं  उनमें  संस्कृत ही एक भाषा  है जो मुण्डारी  भाषा से उच्चारण में एवं व्याकरण में मिलती जुलती है। वैदिक युग में संस्कृत ही आर्यों  की भाषा भी इसकी समानता मुण्डारी  भाषा से इस प्रकार  है :-

१ मुण्डारी  भाषा में देवनागरी लिपि से लिखने पर विसर्ग, हलंत ,अड़ (---)तथा अम  का प्रयोग प्रचूर  रूप से होता हैं  . इसी प्रकार संस्कृत में भी इनका प्रयोग प्रचूर  रूपेण होते हैं। 
मुण्डारी  और संस्कृत में सब से अधिक समीपता एवं समानता सर्वनामों के वचनों  के प्रयोग में पाया जाता है।  मुण्डरी  के तीनों  पुरुषों  में तीन -तीन बचन हैं  अर्थात एक वचन ,द्विवचन एवं बहुवचन।  इसी प्रकार संस्कृत में भी तीनों पुरुष  में तीन -तीन वचन के प्रयोग में भी मुण्डारी  भाषा संस्कृत से एक कदम आगे बढ़ी हुई है एवं मुण्डारी व्याकरण की ------ बताती हैं  वह यही कि मुण्डारी  के उत्तम पुरुष के द्विवचन और बहुवचन में दो व्यक्ति तथा अधिक व्यक्तियो की जिस स्पष्ठता का जिस बोध होता है यह स्पष्ठता संस्कृत में  नहीं है।


मुण्डारी और संस्कृत भाषाओ की इन समानताओं या भिन्नताओं का अध्ययन करने यही पता चलता है कि ये दोनों भाषा एक दूसरे के समकालीन भाषाएँ थी तथा इन दोनों भाषाओं  के विद्वान अपनी -अपनी भाषा में किसी से कम नहीं थे बल्कि उसमें निपुण थे।

मुण्डा  लोगों  के संबन्ध में कितने लेखको का कहना है कि ये ऑस्ट्रो-एशियन  दल के हैं  और कुछ लोगों का कहना है कि ये मंगोलियन दल के लोग हैं।  समय के परिवर्तन होने के कारण  इस जाति  का विभाजन तीन मुख्य साखाओं  में हुआ  अर्थात (१) संतल  मुण्डा (२) हो मुण्डा एवं (३)होडो  मुण्डा  . यघपि ये तीनों  दल के लोग युगों  से विभिन्न दिशाओं  में छितरे हुए हैं तथापि उनके बिच अपनी मातृ भाषा बोली जाती है और उस मातृ भाषा  का-----अध्ययन करने से मालूम होता कि यह मातृ  भाषा अन्य नहीं -मुण्डारी  ही है।  इन दलों के बीच शब्दो  के उच्चारण  एवं वाक्यों के प्रयोग में कुछ वभिन्नताएँ  हैं  किन्तु शब्द  रूप एवं धातृ रूप का अध्ययन  करने से करीब ८० से  १० प्रतिशत  मुण्डारी शब्द उपर्युक्त तीनों दलों द्वारा व्यवहारित पायी जाती है।  इसी से प्रमाणित होता है कि इस तीनों  दलों की उप्तत्ति -युग -युगों के पूर्व -एक ही जड़ ,एक ही कुल तथा एक ही पूर्वजों  से हुई है और आरम्भ में ये तीनों दल एक ही भाषा बोलते थे। उदहारण :-
ओवअ: ओड़अ :(घर), ओते (जमीन),हसा (मिट्टी ).पिड़ि(टॉड ),बा,बहा (फूल ),सकम (पत्ती ),जो (फल),दरू (वृक्ष ),उरि:मवेशी ),मेरोम (बकरी),सिम (मुर्गी),सुकरी (सुअर ),सेता (कुत्ता),हइ ,हकु (मछली ),कड़कोम (केकड़ा ),बिड (साँप ),चोके (मेंढक ),साइल (बारह सिंगा ),  कटा (पैर ),ती (हाथ ),बो: (सिर ),मेंद (आँख),लुतुर (कान ),मू ,मुहु (नाक ),डटा (दाँत ),जोम (खाना ),नू (पीना ),दअ :(पानी),लन्दा (हँसना ),नेल ,लेल (देखना ),दुब ,दुडुब (बैठना ,निर (भागना ),हद (काटना ),होयो (छोलना ),इर (काटना ),इत्यादि। सैकडो शब्द तीनों दलों द्वारा प्रतिदिन के बोल-चाल  में व्यवहारित  हैं।


फादर होफमैन  लिखते हैं -
It took the Aryans a long time to overcome and subjugate definitely the Aborigines and make of then really dasas, slaves and servants; nor was it without occasional reverses.such was a lot  of the tribes that remained in their country.by intermarriage and otherwise, they became gradually Hindusied so as to lose even their language and give rise to many of the lower castes of North India and Bengal. Some tribes prefered to retire before the invaders [Ency.Mundarica Vol.6:1819p].


उपर्युक्त लेख से स्पष्ट होगा कि  आर्यों  से पराजित  होकर उन आदि  निवासियों कि क्या दशा गुजारी ?वे दास तथा गुलाम बना लिये  गये। कितनों को अन्तरजारतीय विवाह के लिए  वाध्य  किया गया और धीरे -धीरे वे अपनी भाषा ही नहीं अपना सर्वस्व भूल गये। तद पशचात इस देश में कई पिछड़ी जातियों का सृजन हुआ।

पर कितनों  ने पराधीनता स्वीकार नहीं की वेअपना सब कुछ छोड़कर जंगलों ,पहाड़ो तथा कठिन घाटियों  में भागकर शरण लिया।  वे अपने साथ कोई लिखित साहित्य या अभिलेख  तो लेकर नहीं गये , सिर्फ अपनी मातृ भाषा ही साथ-साथ ले गये और यह अति आश्चर्या की बात  है कई युगों के बीत  जाने पर भी इन्होंने  अपनी मातृ भाषा को जीता जागता एवं बोल -चल की भाषा रखी है।  इसी से अनुमान किया जा सकता है की मुण्डारी भाषा अपने युग में  कितनी
 अधिक उन्नति के शिकार पर चढ़ी  हुई थी ,तथा इसका प्रभाव अपने लोगों  के हृदयों  के पट में कितनी गहिराई  तक जाकर समा  गई  थी जिससे लिखित अभिलेखों के नष्ट हो जाने पर भी यह भाषा उन लोगों के बीच  अभी भी बोल-चल की जीवित भाषा है।


इन्हीं  कारणों  से  Dr .G. A.Grierson ने अपनी पुस्तक Linguistic survey of India (1906)  खण्ड IV में लिखा है कि  भारत की कुल आबादी का एक पाँचवा  भाग द्रविड़ो  की भाषा के साथ,मुण्डारी  भाषा बोलता है।




१ली  जनवरी ,१९७६                                                                   डॉ. मन मसीह मुण्डु                                                                   



Wednesday, 20 September 2017

gel church history

गोस्सनर  कलीसिया  की स्तापना का श्रेय गोस्सनर मिशन के             फादर योहन्नेस         गोस्सनर को जाता है।
उन्होंने जर्मनी के बर्निल शहर  से 1844 ई. में चार मिशनरियों को भेजा। उनके नाम इमिल        ,फेड्रिक       ,        .                    फादर गोस्सनर से आदेश पाकर  मिशनरियों को बर्मा (   ) देश के मेरगुई शहर  में कारेन  जाती के लोगों  के बीच या हिमालय पर्वत के निकटवर्ती               में सुसमाचार प्रचार करना था।  परन्तु  परमेश्वर की अगुवाई  पाकर वे उपरोक्त स्थानों  पर न जाकर 2 नवम्बर 1845 ई. को रांची पहुँचे।  उन्होंने यहाँ आकर सुसमाचार प्रचार के साथ शिक्षा और          के माध्यम से लोगों के बीच सेवा और सहात्या का कार्यारम्भ  किया।           बेथेसदा  मिशन  -स्टेशन  (जिसका अर्थ -house of MERCY , अनुग्रह  का घर या क्षमा  का घर है )स्थापित  किया जहाँ  प्रथम उपासनालय भी है जो वर्तमान बेथेसदा बालिका उच्च विद्यालय परिसर में अवस्थित  है।  प्रथम चार मिशनरियों  की टीम में से ई. थेयादोर यानके की मृत्यु 02 अगस्त 1846 ई. को हुई और उनकी कब्र रांचु में है।  उनकी विधवा पत्नी श्रीमती हेनरिता  यानके  से बाद में मिशनरी औगुस्त  ब्रांत के विवाह  किया क्योंकि  वे तब तक अविवाहित थे।  मिशनरी औगुस्त  ब्रांत की परपोती श्रीमती sue sifa  वर्तमान  में ऑस्ट्रिलिया में रहती हैं  और गोस्सनर  कलीसिया से Facebook एवं E-mail के जरिये जुड़ी हुई है। 
           चार मिशनरियों की प्रथम टीम के एक मिशनी  की मृत्यु के कुछ महीने पहले 25 जून 1946  ई को एक बालिका का बपतिस्मा हुआ जिसका नाम मार्था  रखा गया।  उसके बाद 26 जून 1846 को 5 अन्य बच्चों  का बपतिस्मा हुआ तथा 9  जून 1850 को--------- समुदाय के चार व्यकितयो  के साथ 7 अन्य बच्चों सहित 11 लोगों  का पवित्र बपतिस्मा हुआ।  इन आदिवासी  पुरखों के वयस्क बपतिस्मा लेने के चार साल पहले  रांची के बपतिस्मारजिस्टर के अनुसार बच्चों  का बाल बपतिस्मा हुआ था -देखें www.kab.scopearchi.ch/Data/orGEL-oo3-0001on head quarter congregation, Ranchi) 9 जून 1850  ई. के व्यस्क बपतिस्मा के बाद  बपतिस्मा  लेने वालों का सिलसिला जारी रहा।  अगस्त वर्ष 26 अक्टूबर 1851  ई.को दो मुण्डा भाई 1 अक्टूबर 1885 ई. को नौ बंगाली ,22 जून, 1864 ई.को दो संथाल ,8 जून 1866 को दो खड़िया  बन्धु तथा 10 मई 1868 ई. को प्रथम 'हो ' परिवार के बपतिस्मा  से इस कलीसिया की जनसंख्या बढ़ने लगी।  राँची शहर  के ईद-गिर्द सेवा  कार्य -------का विस्तार  होता गया।  अन्य शहरो तथा गाँवो में भी मिशन -स्टेशन बनाये गए , जैसे डोम्बा (1847 ), लोहरदगा (1848 ),गोविंदपुर (1850 ),चाईबासा  (1864 )-------(1869 ),पुरुलिया (1863 ) सिंघानी (1853 ) और उन जगहों  पर मंडलियां  भी स्थापित की गई।  मिशन -स्टेशनों  में मंडलियां  के साथ विधालय भी खोले गए।  वर्तमान में झारखण्ड। बिहार,पश्चिम बंगाल,ओडिसा ,मध्य -प्रदेश ,छत्तीसगढ़।,महाराष्ट्र ,असम, अरुणाचल प्रदेश,अंडमान निकोबार,उत्तर -प्रदेश ,हरियाणा,अमृतसर,इलाहबाद ,दिल्ली,कोलकाता,चेन्नई,मुंबई,बेंगलरू,विशाखापत्तनम ,भुवनेश्वर ,आदि शहरो और राज्यों में मंडलिया स्थापित हैं। 
सन 1857 ई.. में सिपाही विद्रोह के आरम्भ हो जाने से गोस्सनर कलीसिया  में घोर विपत्तियाँ  आई  और छोटानागपुर के मसीहियों पर प्रथम सताहट शुरू हुई।  जुलाई का महीना था।  रांची -----------  -------  पर तोप के चार गोले दागे गये।  जिसका निशान आज भी राँची --------गिरजाघर के मुख्या पश्चिमी द्वार के ऊपरी भाग में मौजूद है। सताहट  से बचने के और अपने विश्वास की रक्षा के लिए विश्वासीगण  मिशन अहाते से भाग निकले।  सभी मिशनरी सुरक्षा  के लिए कलकत्ता चले गये।  इसी संकट के समय में कोलकाता में मिशनरी औगुस्त  ब्रांत के औगुस्त  ब्रांत के परिवार में पाँचवा पुत्र गोटफ्रिद ब्रांत का जन्म हुआ जिसने बाद में परिवार के वंश को आगे बढ़ाया। स्थानीय  ----------- जंगल,नदी  पार करते हुए भागते -भागते रांचीसे 38 कि.मी. दूर------ डुमरगाड़ी ,बिलसेरेंग  गाँव के जंगल में शरण ली।  वहीं पर उन्होंने ईश्वरीय -उपासना के निमित्त पथरो का ढेर -----------  क्रूस गाड़ दिया जो आज तक मौजूद है। उस स्थान को "------- डेरा "  के नाम से जाना जाता है। वहाँ प्रतिवर्ष उन आदि -विश्वासी -मिलन महोस्तव आयोजित किया जाता है। 

सन 1915 ई. में प्रथम विश्व युद्ध के समय जब जर्मन मिशनरियों  को स्वदेशन  लौटना पड़ा  तब  कलीसिया की देखभाल की जिम्मेवारी छोटानागपुर के बिशप डॉ. फोस्स। ....... (तत्कालीन  एंगलिकन  कलीसिया )को दिया गया। उसी दरमिया स्वदेशी कलीसिया अगुवों ने 10  जुलाई 1919 ई.में गोस्सनर कलीसिया को ऑटोनोमस (आत्मशासित , आत्मपलित एवं स्व -सुसमाचार प्रचार करने के लिए स्वतंत्र ),घोषित किया।  कलीसिया  में जो सभा बनी उसका नाम चर्च कौंसिल रखा गया. एडवाईजरी  बोर्ड इंडिया बनाई जो सेन 1928  ई. तक थी। इस ट्रस्ट ने सरकारी इकरारनामा के अनुसार नए बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज को जायदाद का जिम्मा 1939  ई. तक के लिए दिया जिसने 9  मई 1940 ई. को गोस्सनर कलीसिया को पूर्णरूपेण  जायदाद हस्तांतरित  क्र दिया और सम्पूर्ण चल-अचल सम्पत्ति का पूर्ण स्वामित्व गोस्सनर कलीसिया  का हो गया। 


आत्मशासित कलीसिया ने अपनी नियमावली बनाई और कलीसिया का पंजीकरण या रजिस्ट्रेशन गोस्सनर। ------------  चर्च इन छोटानागपुर एण्ड असम के नाम से 30 जुलाई 1921 ई.को सोसाइटीज एक्ट 1860  की धारा 21 के अनुसार हुआ इस नियमावली के अनुसार कलीसिया-प्रशासन  का भार  चर्च कौंसिल और महासभा के ऊपर रखा गया।  कलीसिया के प्रथम प्रेसीडेंट  मान्यवर पाद्री  हनुकदन्तो लड़का ,सेक्रेटरी  मान्यवर श्री पीटर हुरद  हुए और। ...... ... श्री निर्मल सोय  चुने गए। 

10फरवरी  1928 ई.को एडवाईजरी  बोर्ड का अन्त हुआ।  इसी वर्ष कई जर्मन मिशनरी भारत लौट  आए , जो 
 कलीसियाकी नियमावली के अधीन काम  लगे।  लेकिन  1939ई. में पुन: द्वितीय विश्व  महायुद्ध के छिड़  जाने से जर्मन मिशनरियों को स्वदेश लौट  जाना पड़ा।  
1928 ई. .में कलीसिया की नियमावली का संशोधन किया गया , जिसके अनुसार इसका सम्पूर्ण। ...... 15 सिनोड में बांटा  गया।  राँची की मंडली को हेडक्वार्टर्स या MOTHER -CONGREGATION (माता -मंडली) कहा गया। 1960 ई. में नियमावली  का फिर संशोधन किया गया  जिसके अनुसार कलीसिया को चार अंचलों में बांटा गया तथा अलग से।.                   सिनोड और हेडक्वार्टर्स  कंग्रिगरेशन  राँची को अस्तित्व दिया गया। 1970 ई.में।  ......... सिनोड को मध्य -अंचल के नाम से पाँचवा अंचल घोषित किया गया।  इसके अनुसार केन्द्रीय सलाहकारी सभा तथा अंचलो में अंचल सभाए बनीं।  केन्द्रीय सलाहकारी सभा (के.एस.एस.) की सहायता  के लिए अनेक बोर्ड बने। 

सन 1973  में कलीसियाई  संविधान के पुन :संशोधन की प्रक्रिया शुरू हुई जो कई कारणों  से पूरी नहीं हुई।  फिर भी बिशपीय  शासन पद्धति को अपनाने  एवं कलीसिया में एकता लाने के लिए सविधान  का फिर से संशोधन  किया जाने लगा।  इसी के मद्देनजर 2 नवंबर 1995  से बिशपीय  शासन पद्धति लागू  की गई।  इसके तहत कलीसिया पाँच डायसिसो और हेड क्वार्टर्स कंग्रिगरेशन ( माता -मंडली) राँची के रूप में संगठित  की गई ,जो इस प्रकार हैं :-

1 .नार्थ -ईस्ट डयासिस (हेड क्वार्टर तेजपुर ,असम )
2 .नार्थ-वेस्ट डयासिस (राँची  से उत्तर पश्चिम )
3. साउथ -ईस्ट डयासिस (राँची  से  दक्षिण कदमा , खूटी )
4 .साउथ-वेस्ट डयासिस (ओडिसा ,राजगांगपुर )
5 .  मध्य - डयासिस (........  सिमडेगा )
6 . हेडक्वार्टर्स  कंग्रिगरेशन,राँची। 
 डाय सिसो में डायसिसन  .........  और केन्द्र  में सेन्ट्रल  ......  ऑफिस का गठन किया गया।  इनके प्रधनों अर्थात  प्रधान पादरियों को बिशप कहा  जाता है। कुल छ: बिशप हैं  जिनमें से एक मोडरेटर चुने जाते हैं जो अपने डयासिस के बिशप होने के अतिरिक्त केन्द्रीय कार्यालय के प्रधान होते हैं। 
गोस्सनर कलीसिया अपने ऑटोनोमी को लेकर 98 वर्ष पूरी करने की ओर  बढ़ रही है। इस निमित्त सेन्ट्रल। ........ ने कलीसिया के आत्म -निरी  ...... ,मूल्यांकन और भविष्य के लिए एक दर्शन के निर्माण हेतु एक कमिटी बनाई है।  इसके द्वारा कलीसिया की मजबूती और दुर्बलता दोनों पक्षों  में शोध करने का अवसर मिलेगा। सविंधान  में वर्णित पाँच -सूत्री सेवकाई ,यथा-ईश्वररोपासन ,पास्तरीय  देख भाल ,सुसमाचार प्रचार,सामाजिक -आथिर्क विकास एवं चंगाई की सेवा के आलोक में मुल्यांकन  होगा। 

गोस्सनर कलीसिया के लिए गौरव  का विषय है की जर्मन मिशनरियों ने दुरदर्शिता का परिचय देते हुए कलीसिया की आत्मनिभर्रता या स्वपालन हेतु। ........ भू-सम्पत्ति की व्यवस्था की है।  इनकी सुरक्षा करते हुए उनका सदुपयोग कर कलीसिया की आर्थिक। ........ को मजबूत बनाया जा सकता है और यह जरुरी  भी है। स्कूल ,कॉलेज,शिक्षा -प्रशिक्षण संस्थाओं  को सुधार के साथ विकसित करने ,अस्पताल व  ......... के द्वारा रोगियों की सेवा करने की चुनौती दिनों -दिन बढ़  रही है। इसी प्रयास में राँची हेड -क्वार्टर के अंतगर्त 2  नवंबर 2011 ई. को। ....... चर्च बेथेसदा प्रेयर टावर एण्ड कौन्सेल्लिंग  सेंटर (.........  केन्द्र )का प्रारम्भ हुआ है।  इसके लिए सम्पर्क संख्या 9934111919 ,8809910783 ,923401325  है जिसके द्वारा प्रार्थना  अर्जी भेजी  सकती है। 













Saturday, 16 September 2017

प्यार क्या है?

प्यार ,हर किसी के जीवन में प्यार ने दश्तक  जरूर दिया होगा। हर कोई अपने जीवन में किसी न किसी  से प्यार ज़रूर किया होगा ?आपने भी किया होगा ?आज में आप को ऐसे ही प्यार के बारे में बताने वाली हु  जहाँ सैम ने   भी किसी  से बेहद प्यार किया था। यह कहानी है। सैम की जिसने युवा उम्र में प्यार किया , यह उम्र ही  ऐसी है जहां युवा अपने भविष्य को छोड़ अपने जीवन में एक ऐसे  मित्र को ढुढते  है। जो उन्हें  बेहद प्यार करे और यह कहानी भी ऐसे ही युवा की है  जिस ने अपने युवा उम्र में एक लड़की से प्यार किया। उसके प्यार का नाम था राजी। उनकी मित्रता कब प्यार में बदल गयी उन्हें भी नहीं पता थी। 


सैम और राजी एक दूसरे  से कब और कैसे प्यार करने लगे उन्हें  पता भी नहीं  चला । वे अक्सर एक दूसरे से मिलते और बाते करते उनकी बाते कभी ख़त्म होने का  नाम ही नहीं लेती, बिताए हुवा  हर पल ऐसा लगता  मनो एक छन हो। कैसे ५ साल बीत गया  उन्हें पता  भी नहीं  चला।  न जाने कैसे राजी के परिवार वालों  को उसके प्यार के बारे  में पता चला। राजी के परिवार वाले  उनके प्यार के खिलाफ थे। क्योंकि सैम एक इसाई  परिवार से आता है। राजी के परिवार वालो ने उसके प्यार को नहीं  स्वीकारा जिससे सैम और रागी एक दूसरे  से अलग होना पड़ा । राजी ने प्यार और परिवारवोलों  के बिच अपने परिवार को चुना जिससे सैम पूरी तरह  टूट चुका  था । शायद परमेश्वर ने सैम की जीवन के लिए  कुछ और ही सोचा था। जहाँ सैम और राजी का एक दूसरे  से मिलना बाते करना  बंद होया था।  सैम बहुत ही  उदाश रहने लगा वह परमेश्वर से प्रसन  करने लगा।  वह न तो किसी से बाते करता और न  किसी से  मिलता स्वयं में ही रहने लगा। इसी बिच एक दिन उसकी मित्रता सोशल मीडिया द्वारा  एक लड़की से हुई जिसका नाम था  देविका । देविका उसके जीवन में तब आयी जब सैम अपने जीवन से न खुश था देविका से बाते करने के बाद  सैम अपनी उदास जीवन के बारे  में भूलने लगा देविका से बाते कर उसे  काफी अच्छा लगता था।  जहाँ कोई उसके बारे में पूछता भी नहीं था। देविका के जीवन में आने से वह मुस्कराने लगा मनो उसे एक नई जीवन मिली। देविका में उसने  राजी को मह्सुश करने लगा।

सैम की रुची हमेशा से ही फोटोग्राफी में थी वह एक  फोटोग्राफर बनना चहता था। देविका  ने सैम  को अपने इस सपने को पूरा करने  के लिया  प्रेरित किया, सैम अपने सपने को साकार करने के लिए पूरी मेहनत  करने  लगा। देविका के जीवन में आने से सैम को एक नई जीवन मिली देविका के सात सैम ने एक नया जीवन शरु  किया।  देविका के आने से सैम को  ना केवल एक नई ज़िन्दगी मिली बल्कि उसने अपना सपना भी पूरा किया आज वह एक महसुर फोटोग्राफर है।  वह एक कुशल ज़िन्दगी जी रहा है। जिस परमेश्वर को वह कभी प्रशन करता था आज उन्हें धन्यावाद देता है ऐसे जीवन की जहा उसे एक नई जीवन साथी मिली। और उसने अपना सपना पूरा किया।

बाइबिल  जेरेमिया ३३:३ में लिखा है। तुम मुझे प्रशन  करोगे और मैं तुम्हें  तुह्मारे प्रश्नो का उत्तर दुगा। परेमश्वर ने भी उसके प्रशनो  का  उत्तर दिया। जहा उससे एक ऐसे जीवन साथी मिली जिसने उसे एक नया जीवन और प्यार दिया।सैम से मिलकर और उसके जीवन के बारे में जान कर मुझे  ज्ञात हुआ की अगर जीवन में कुछ होता है तो तुम्हरे बलाई के लिए है परमेश्वर ने हर किसी के लिए कुछ न कुछ सोचा है हमें उस परमेश्वर को प्रशन नहीं करना चाहिए।  बस परमेश्वर पर दिल से विश्वाश करो तुम्हे तुम्हरे क्रम का फल जरूर मिलेगा।






























Saturday, 13 May 2017

यह कहानी है वरुण खरे की  जिन्होंने अपने पिता को बचपन  में  खो दिया था।  वरुण  हमेशा से ही अपने परिवार को अपनी जीवन  में एक महत्वपूर्ण स्थान दिया। पर एक दिन उसके परिवार भी उसके खिलाफ़ थे। अगर किसी ने उसका साथ दिया तो व थे येशु मसीह ।


 वरुण खरे की  तीन  बहने थी, वह अपनी दूसरी  बहेन  के काफी करीब थे। उसकी फ्रेंड थी अंसुल जो चेन्नई किसी  काम से गई  हुई थी।  वहा उसे येशु मसीह के बारे में पता चला  और उसने अपना  जीवन येशु मसीह  को अर्पित किया।  उसने वरुण की बहेन से येशु मसीह के बारे में बताया की अगर तुम्हें कोई भी समस्या होगी  तो येशु मसीह  तुम्हें अपने वचनों द्वारा उसका समाधान देंगे ! तब वरुण ने अपने बुरे सपनो के लिए बाइबिल पढ़ना शुरु किया। जिससे बुरे सपने आने बंद हो गए।वरुण ने येशु मसीह  को अपने जीवन में  महसूस   किया वो वचनो द्वारा उससे बाते करते थे। अंसुल के कहने पर वरुण, अंसुल के साथ प्रेयर मीटिंग ,और चर्च जाना शुरु किया ९ महिने बाहर  रह कर जब व अपने घर आया  तब उसकी  माँ और बहनों  ने उससे बाते करनी बंद कर दिया था।  उनसे यभी सुनने को मिला की वह किसी काम का नहीं है।  जिस रिश्तो को वह अपने जीवन में एक  महत्वपूर्ण स्थान दे रखा था आज उन्हीं से ऐसी बाते सुन वह पूरी तरा टूट चुका था वह घर छोड़ आत्महत्या के लिया  निकल गया। तभी उसे  घर वालों और अंसुल के काफी फ़ोन आने लगे।उसने अंसुल के कॉल  रिसीव किया ,अंसुल ने उसी वक्त उसे वह आने को कहा  और वह जब अनुसल के घर गया जो भी उसे पहले मिला  उसके गले लगकर वह रोने लगा। जब  वह कमरे में गया तब उसने वह एक क्रिस्टेन केलिन्डर  देखा जिस में लिखा था  I will bless you on this day onwards...यह देख काफी सुकून मिला और यह बात काफी सच्च  हुई येशु मसीह  उसके दोष  बने और आज उसकी माँ उसमे येशु मसीह   की छवि देखती है। येशु की आशिरवाद से उसे  अच्छी पत्नी और दो बच्चे  मिले। जब वह पिछे मुरके देखते है तो व एक कमज़ोर  व्यक्ति  था पर आज वह कमजोर नहीं एक ताकतवर व्यक्ति है ईस्वर  ने उसे ताकतवर इंसा  बनाया।  वचन में लिखा है WHEN I AM WEEK AM STRONG